कोरोना की दूसरी लहर में व्यवस्था बस देखने भर की थी। हर सांस पर जूझते संक्रमितों के लिए न ऑक्सीजन थी और नजीवन का आखिरी संघर्ष कर रहे मरीजों के लिए अस्पतालों में बिस्तर दवाओं का ऐसा संकट कि लोग शहर-शहर धक्के खा रहे थे।
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